1. हरेली तिहार से जुड़े पारंपरिक गीत और कहावतें
हरेली के दिन गांवों में खासतौर पर छत्तीसगढ़ी लोकगीत गाए जाते हैं। ये गीत खेती, हरियाली और जीवन की समृद्धि का उत्सव होते हैं।

(i) पारंपरिक गीत (लोकगीत)
- “हरेली के दिन गीड़ी चढ़न जाबो रे,
हरी-भरी धरती माई ला नमन करबो रे…”
(अर्थ: हरेली के दिन गेड़ी चढ़कर धरती मां को नमन करेंगे।) - “हरेली तिहार आय हव,
करेला खाबो, गेड़ी चढ़ाबो, बैल ला सजाबो…”
(अर्थ: हरेली आया है, करेले खाएँगे, गेड़ी चढ़ेंगे और बैल को सजाएँगे।) - सावन में सांवली औरतें झूला झूलते हुए गाती हैं:
“झूला झूलबो सावन मा, हरेली तिहार मनाबो।”
(ii) कहावतें
- “हरेली मा खेत ल छोड़ना, त बेरा बिगड़ जाही।”
(हरेली के दिन खेत को छोड़ना अशुभ है।) - “हरेली मा करेले खा, देह भीतर के जहर ला निकार।”
(हरेली में करेला खाओ, शरीर से विष निकालो।) - “हरेली के झाड़ू, बेरा अउ बीमारी ला दूर करथे।”
(हरेली की झाड़-फूंक बुरी आत्माओं और बीमारियों को दूर करती है।)
2. आधुनिक समय में हरेली तिहार (शहरी और ग्रामीण बदलाव)
ग्रामीण क्षेत्र में
- अभी भी गांवों में हल-बैल की पूजा, गेड़ी दौड़, बैल दौड़ और झाड़-फूंक की परंपरा ज़िंदा है।
- पंचायत स्तर पर सामूहिक आयोजन और ग्रामीण खेल-कूद (रस्साकशी, कबड्डी) कराए जाते हैं।
- युवाओं के लिए गेड़ी प्रतियोगिता और बैल सजावट प्रतियोगिता रखी जाती है।
शहरी क्षेत्र में
- सरकारी स्तर पर कार्यक्रम – CM हाउस, सरकारी भवनों और सांस्कृतिक केंद्रों में हरेली महोत्सव मनाया जा रहा है।
- संस्कृति मंच – लोकनृत्य, गेड़ी नृत्य, झूला प्रतियोगिता और छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की प्रदर्शनी आयोजित होती है।
- स्कूल-कॉलेज में थीम आधारित कार्यक्रम – बच्चों को गेड़ी चढ़ना सिखाया जाता है और हरेली पर निबंध-चित्रकला प्रतियोगिता होती है।
- सोशल मीडिया पर प्रचार – अब हरेली के संदेश डिजिटल कार्ड्स, पोस्टर्स और वीडियो के जरिए फैलाए जाते हैं।
निष्कर्ष:
हरेली तिहार अब ग्रामीण परंपरा और शहरी आधुनिकता का संगम बन चुका है। गांव में यह खेती, औषधीय परंपरा और धार्मिक आस्था का त्योहार है, जबकि शहरों में इसे सांस्कृतिक उत्सव और लोक पहचान के रूप में मनाया जा रहा है।