1. मयूरभंज की आदिवासी महिलाएँ और पारंपरिक संथाली साड़ी
- मयूरभंज जिले की 650 से अधिक आदिवासी महिलाएँ ने लंबे समय तक भूली-बिसरी पड़ी संथाली साड़ी को पुनर्जीवित किया।
- उन्होंने इस पारंपरिक वस्त्र को नया स्वरूप दिया और इसे अपनी पहचान बनाने में सफल रहीं।
- यह प्रयास न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संजोने वाला है, बल्कि आर्थिक रूप से स्वयंनिर्भरता का आदर्श उदाहरण भी है। PM मोदी ने कहा: “These women are not just making cloth, they are carving their own identity.”
इससे वे हर महीने हजारों रुपये कमा रही हैं, जो उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति को समृद्ध कर रहा है।
2. क्योंझर जिले की “Radhakrishna Sankirtan Mandali” और पर्यावरण जागरूकता
- प्रामिला प्रधान की अगुआई वाली भक्ति मंडली ने पारंपरिक भजन-कीर्तन में नए गीत और संदेश जोड़े, ताकि वे लोगों में वन-आग्नि सचेतता फैला सकें।
- मंडली गांव-गांव जाकर आग के खतरों, वन संरक्षण, और प्राकृतिक आपदाओं की जानकारी गीतों के माध्यम से देती है।
- प्रधानमंत्री ने इस अभिनव पहल की सराहना करते हुए कहा कि हमारी लोक परंपराएं समाज को दिशा देने की ताकत आज भी रखती हैं।
📋 प्रमुख बिंदुओं का सारांश
पहल का नाम | स्थान (जिला) | उद्देश्य | प्रमुख प्रभाव |
---|---|---|---|
संथाली साड़ी पुनरुद्धार | मयूरभंज | पारंपरिक वस्त्र संरक्षण, महिला सशक्तिकरण | आर्थिक आत्मनिर्भरता, सांस्कृतिक गर्व |
कीर्तन मंडली – पर्यावरण जागरूकता | क्योंझर | पर्यावरण संरक्षण विषय जागरूकता | लोक संस्कृति के माध्यम से सकारात्मक बदलाव |
💬 प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया
- पीएम मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि लोक परंपराएं केवल गूढ़ स्मृतियाँ नहीं, बल्कि आज भी समाज के विकास के साधन हैं।
- इन दोनों पहलों को उन्होंने विकास की दिशा में प्रेरणास्पद उदाहरण के रूप में पेश किया।
🧭 निष्कर्ष
यह दो पहलें ओडिशा की लोक संस्कृति और सामाजिक नवोन्मेषण को बखूबी दर्शाती हैं। इनमें से एक महिला सशक्तिकरण और परंपरा संरक्षण का मिलन है, जबकि दूसरी लोक लोकाचारों की शक्ति के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण संदेश प्रसारित करने की मिसाल है।
दोनों प्रयास स्पष्ट करते हैं कि लोक परंपराएं आज भी समाज को दिशा देने की क्षमता रखती हैं—और जब सभी वर्ग मिलकर काम करें, तो यह सम्पूर्ण विकास की ओर अग्रसर हो सकता है।
