गजेंद्र यादव का राजनीतिक सफर बेहद दिलचस्प है क्योंकि उन्होंने एक छोटे स्तर के पार्षद से लेकर पहली बार में ही विधायक और अब मंत्री बनने तक का सफर तय किया है। आइए इसे विस्तार से देखें:

1. पारिवारिक और वैचारिक पृष्ठभूमि
- गजेंद्र यादव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े बिसरा राम यादव के पुत्र हैं।
- संघ की पृष्ठभूमि और पारिवारिक संस्कारों का असर बचपन से ही उनके व्यक्तित्व और राजनीति की ओर रुझान में दिखाई देता है।
2. छात्र राजनीति और शुरुआत
- 1996 में जब वे दुर्ग के साइंस कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई कर रहे थे, तभी राजनीति में सक्रिय हुए।
- इसी दौरान वे स्व. ताराचंद साहू के लोकसभा चुनाव में कार्यकर्ता के रूप में जुड़े और जमीनी स्तर पर काम किया।
- उनकी सक्रियता और समर्पण को देखकर भाजपा ने उन्हें वार्ड अध्यक्ष बनाया।
- 1998 विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा प्रत्याशी हेमचंद यादव के लिए जमकर काम किया।
3. सबसे युवा पार्षद बनने का रिकॉर्ड
- 1999 में भाजपा ने उन्हें दुर्ग नगर निगम चुनाव में कचहरी वार्ड से प्रत्याशी बनाया।
- गजेंद्र यादव ने यहां बड़ा उलटफेर करते हुए 5 बार के पार्षद और पूर्व उपमहापौर खेमलाल सिन्हा को हराया।
- इस जीत के साथ वे अविभाजित मध्यप्रदेश के सबसे कम उम्र के पार्षद बने और दुर्ग शहर की राजनीति में पहचाने जाने लगे।
- वे 2005 तक पार्षद रहे।
4. संगठन और स्काउट-गाइड में योगदान
- भाजपा सरकार बनने के बाद उन्हें 2005 में तत्कालीन शिक्षामंत्री मेघाराम साहू ने स्काउट-गाइड का राज्य सचिव नियुक्त किया।
- 2009 में वे भाजपा किसान मोर्चा के प्रदेश सचिव बने।
- 2015 में वे स्काउट-गाइड के राज्य आयुक्त नियुक्त किए गए।
- उनके नेतृत्व में स्काउट-गाइड ने पर्यावरण, कला, संस्कृति, यातायात जागरूकता और सामाजिक कार्यों में बड़ी भूमिका निभाई।
- कोड़िया देऊरझाल गांव में 1.53 लाख पौधरोपण (पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह की उपस्थिति में) जैसे कार्यों ने उन्हें खास पहचान दिलाई।
- यातायात जागरूकता के लिए 10,622 बच्चों को प्रशिक्षित किया गया।
5. पिछड़ा वर्ग राजनीति और समाज को जोड़ना
- भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने उन्हें भाजपा पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया।
- इस भूमिका में उन्होंने कम समय में ही पिछड़ा वर्ग समुदाय की समस्याओं को पार्टी नेतृत्व तक पहुंचाया।
- दुर्ग में उन्होंने पिछड़ा वर्ग समागम आयोजित कर विभिन्न समाजों को एकजुट करने की बड़ी पहल की।
- इस काम ने उन्हें संगठन के भीतर और भी मजबूत पहचान दिलाई।
6. 2023 विधानसभा चुनाव – बड़ा उलटफेर
- भाजपा ने 2023 में उन्हें दुर्ग सीट से टिकट दिया।
- यहां उनका मुकाबला कांग्रेस के दिग्गज नेता और अरुण वोरा (पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा के बेटे) से था।
- गजेंद्र यादव ने यहां 96,651 वोट हासिल किए जबकि अरुण वोरा को केवल 48,376 वोट मिले।
- यानी यादव ने 48,275 वोटों के बड़े अंतर से जीत दर्ज की।
- यह जीत प्रदेश में चर्चा का विषय रही क्योंकि उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ते ही कांग्रेस के बड़े घराने को हराकर मैदान मारा।
7. पार्षद से मंत्री तक का सफर
- पार्षद → नगर निगम में युवा नेता के रूप में पहचान।
- संगठन → स्काउट-गाइड और पिछड़ा वर्ग मोर्चा में सक्रिय भूमिका।
- विधायक → पहली बार ही बड़ी जीत।
- अब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के मंत्रिमंडल में मंत्री बनकर उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा को नई ऊँचाई दी।
✅ सारांश:
गजेंद्र यादव का राजनीतिक सफर इस बात का उदाहरण है कि संघ की पृष्ठभूमि, संगठन में मेहनत, समाज का समर्थन और जमीनी कार्यकर्ता का संघर्ष किस तरह एक नेता को पार्षद से उठाकर सीधे मंत्री पद तक पहुँचा सकता है। पहली बार विधायक बनने के बावजूद उन्होंने दिग्गज अरुण वोरा को हराकर अपनी मजबूत पहचान बना ली है।