छत्तीसगढ़ का रजत जयंती वर्ष (25 वर्ष) सिर्फ राज्य निर्माण का जश्न नहीं है, बल्कि यह इस बात का संकेत भी है कि जिन क्षेत्रों ने कभी आतंक और हिंसा का सामना किया, अब वहां सुरक्षा और समृद्धि की नई कहानी लिखी जा रही है। इसमें सबसे बड़ा उदाहरण है बस्तर।

🔴 बस्तर की पुरानी तस्वीर
- बस्तर कभी लाल आतंक (नक्सलवाद) का गढ़ माना जाता था।
- 3-4 दशकों तक यहां के लोग—
- बारूदी सुरंगों के धमाके,
- गोलियों की आवाज,
- और मौत के खौफ
में जीने को मजबूर थे।
- नक्सली हिंसा के कारण—
- बच्चों की शिक्षा छिन गई,
- गांवों का विकास ठप हो गया,
- और हजारों परिवार उजड़ गए।
- पूरे देश में बस्तर की छवि केवल हिंसा और पिछड़ेपन के रूप में जानी जाती थी।
🟢 अब बदल रही तस्वीर – मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की पहल
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार ने बस्तर को हिंसा से निकालकर विकास की पटरी पर लाने का संकल्प लिया है।
✅ सुरक्षा मोर्चे पर
- नक्सलियों के खिलाफ लगातार कड़ी कार्रवाई।
- सुरक्षाबलों की नई तैनाती और तकनीकी संसाधनों का उपयोग।
- सड़क, मोबाइल नेटवर्क और पुल-पुलिया बनाकर उन इलाकों तक पहुंच बनाई जा रही है, जो पहले नक्सली गढ़ थे।
- स्थानीय युवाओं को सुरक्षा बलों में भर्ती कराकर मुख्यधारा से जोड़ा जा रहा है।
✅ विकास मोर्चे पर
- शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को गांव-गांव तक पहुंचाया जा रहा है।
- स्कूल फिर से खुल रहे हैं, बच्चों को पढ़ाई के अवसर मिल रहे हैं।
- सड़क, बिजली, इंटरनेट जैसी सुविधाएं तेजी से पहुंच रही हैं।
- कृषि, वनोपज और पर्यटन को बढ़ावा देकर लोगों को रोज़गार के नए अवसर मिल रहे हैं।
- आदिवासी संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित कर उन्हें आर्थिक सशक्तिकरण से जोड़ा जा रहा है।
✨ बस्तर का नया चेहरा
- नक्सलवाद की कमर टूट चुकी है और इसका समूल खात्मा अब तय माना जा रहा है।
- लोग अब डर से नहीं, विकास और उम्मीद से जी रहे हैं।
- निवेश और औद्योगिक योजनाओं के जरिए बस्तर में रोजगार और आत्मनिर्भरता बढ़ रही है।
- रजत जयंती वर्ष बस्तर के लिए सचमुच एक नए जीवन का प्रतीक बन गया है।
📌 निष्कर्ष
बस्तर, जो कभी संघर्ष और आतंक की धरती के रूप में जाना जाता था, अब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में सुरक्षित और समृद्ध क्षेत्र बनने की ओर बढ़ रहा है। रजत जयंती वर्ष इस बदलाव का साक्षी है और यह संदेश देता है कि छत्तीसगढ़ अब डर से विकास की ओर बढ़ चुका है।