जैसे India में DPDP नियम तैयार हो रहे हैं, वैसे ही कई देशों में डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन कानूनों और एग्रीमेंट्स पर काम चल रहा है। सरकारें यह सुनिश्चित करना चाहती हैं कि टेक कंपनियाँ उपयोगकर्ता डेटा का कैसे उपयोग कर रही हैं, उसकी पारदर्शिता हो।
🌐 डेटा प्राइवेसी और रेगुलेशन – ग्लोबल परिप्रेक्ष्य
1. भारत (India) – DPDP Act 2023
- DPDP (Digital Personal Data Protection) Act अगस्त 2023 में पारित हुआ।
- इसका मकसद है कि यूज़र का डेटा सिर्फ उन्हीं उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल हो, जिनकी अनुमति यूज़र ने दी है।
- इसके तहत:
- कंपनियों को स्पष्ट बताना होगा कि वे डेटा क्यों ले रही हैं और कहाँ उपयोग करेंगी।
- डेटा ब्रीच होने पर तुरंत Data Protection Board को सूचना देना अनिवार्य होगा।
- बच्चों के डेटा (18 वर्ष से कम) पर विशेष सुरक्षा प्रावधान।
- यूज़र को Right to Consent, Right to Withdraw, Right to Erasure (डेटा हटाने का अधिकार) मिलेगा।
- पेनल्टी: बड़ी चूक पर कंपनियों पर ₹250 करोड़ तक का जुर्माना।
2. यूरोप (EU) – GDPR (General Data Protection Regulation)
- 2018 से लागू।
- इसे दुनिया का सबसे सख्त डेटा प्रोटेक्शन कानून माना जाता है।
- इसमें:
- Right to be Forgotten (डेटा हटाने का अधिकार)
- Data portability (एक सर्विस से दूसरी में डेटा ले जाने का अधिकार)
- कंपनियों को स्पष्ट consent लेना अनिवार्य।
- जुर्माना: सालाना ग्लोबल रेवेन्यू का 4% तक या €20 मिलियन (जो भी बड़ा हो)।
3. अमेरिका (US)
- अमेरिका में अभी federal level पर GDPR जैसा कानून नहीं है, लेकिन कई स्टेट्स ने अपने नियम बनाए हैं।
- CCPA (California Consumer Privacy Act) और CPRA (California Privacy Rights Act) सबसे अहम हैं।
- ये यूज़र को “opt-out” का अधिकार देते हैं, यानी यूज़र यह तय कर सकता है कि उसका डेटा बेचा/शेयर किया जाए या नहीं।
4. एशिया और अन्य देश
- चीन – Personal Information Protection Law (PIPL), GDPR जैसा लेकिन और भी सख्त।
- जापान – Act on the Protection of Personal Information (APPI)।
- ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, ब्राज़ील – अपने-अपने डेटा प्रोटेक्शन एक्ट्स लागू कर रहे हैं।
- Global Agreements – जैसे EU-US Data Privacy Framework (2023), ताकि कंपनियों को ट्रांस-अटलांटिक डेटा ट्रांसफर की इजाज़त मिल सके।
🔑 क्यों ज़रूरी है ये सब?
- Data misuse (जैसे Cambridge Analytica मामला)
- Targeted advertising & surveillance → यूज़र की privacy खतरे में
- Cross-border data flow → डेटा किस देश में स्टोर हो और कौन regulate करे, यह बड़ा सवाल है
- AI & Big Data → अब कंपनियाँ यूज़र का profile बना सकती हैं → bias और misuse का खतरा
📌 भारत के लिए इसका मतलब
- DPDP Act लागू होने से भारत में Google, Meta, Amazon जैसी कंपनियों को और पारदर्शिता रखनी होगी।
- भारतीय यूज़र्स को पहली बार अपने डेटा पर कानूनी अधिकार मिल रहे हैं।
- इससे भारत Global Data Protection Club में शामिल हो गया है।
👉 आसान भाषा में:
पहले टेक कंपनियाँ यूज़र का डेटा अपनी मर्ज़ी से इकट्ठा कर, बेच या इस्तेमाल कर सकती थीं। अब दुनिया भर की सरकारें चाहती हैं कि यूज़र ही अपने डेटा का मालिक बने और कंपनियों को जवाबदेह ठहराया जाए।

