1) ताज़ा कार्रवाई
- स्थान: अकलतरा (जांजगीर-चांपा जिला) का अंबेडकर चौक इलाका।
- लक्ष्य: कोयला व्यापारी का निवास (जयचंद कोसले का घर)।
- जयचंद कोसले कांग्रेस शासनकाल में सचिवालय में सहायक ग्रेड-2 के पद पर कार्यरत थे।
- उनका बेटा कोयले का कारोबार करता है।
- कार्रवाई:
- डीएसपी अजितेश सिंह के नेतृत्व में ACB (भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो) की टीम ने छापा मारा।
- सुबह से घर पर मौजूद दस्तावेजों की जांच की जा रही है।
- समानांतर कार्रवाई:
- इसी दिन EOW (Economic Offences Wing) ने शराब घोटाले से जुड़े रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर के 10 ठिकानों पर छापेमारी की।
- इनमें रायपुरा (रायपुर) स्थित शराब कारोबारी अवधेश यादव का घर भी शामिल था।
2) कोयला लेवी घोटाला — कैसे हुआ?
- योजना:
- सामान्यतः कोयला परिवहन के लिए खनिज विभाग से ऑनलाइन परमिट जारी होते हैं।
- लेकिन वर्ष 2020–22 के बीच, कथित रूप से राजनीतिक/प्रशासनिक मिलीभगत से इस सिस्टम को ऑफलाइन कर दिया गया।
- मास्टरमाइंड:
- कोयला व्यापारी सूर्यकांत तिवारी को इस घोटाले का मास्टरमाइंड माना जाता है।
- प्रक्रिया:
- प्रत्येक ट्रक/टन कोयले पर ₹25 प्रति टन की अवैध वसूली की गई।
- यह राशि उन व्यापारियों से ली जाती थी जिन्हें परिवहन की अनुमति/पीट-पास जारी करना होता था।
- जो व्यापारी यह लेवी देता, उसी को पास और ट्रांसपोर्ट की सुविधा दी जाती।
- संलग्न अधिकारी:
- उस समय खनिज विभाग के संचालक IAS समीर विश्रोई द्वारा ऑफलाइन करने का आदेश जारी किया गया था।
3) पैमाना (कितना बड़ा घोटाला?)
- अनुमान है कि 570 करोड़ रुपए तक की वसूली की गई।
- यह रकम व्यवस्थित ढंग से सूर्यकांत तिवारी के नेटवर्क में जमा होती थी।
4) रकम का इस्तेमाल कहाँ हुआ?
जांच एजेंसियों के मुताबिक:
- राजनीतिक नेताओं और अफसरों को रिश्वत देने में।
- चुनावी खर्चों को मैनेज करने के लिए।
- बड़ी रकम से चल-अचल संपत्तियों की खरीद (जमीन, मकान, निवेश आदि)।
5) महत्व और असर
- यह मामला छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक सिस्टम और राजनीति पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
- राज्य राजस्व को नुकसान तो हुआ ही, साथ ही भ्रष्टाचार का पैसा लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं (चुनाव) में इस्तेमाल होने का आरोप और गंभीर है।
- अब ACB–EOW की संयुक्त सक्रियता से संकेत है कि केंद्र और राज्य स्तर पर इस नेटवर्क को जड़ से पकड़ने की कोशिश तेज़ हो गई है।
👉 निष्कर्ष:
कोयला लेवी घोटाला और शराब घोटाला, दोनों ही छत्तीसगढ़ की सबसे चर्चित आर्थिक अपराध कहे जा सकते हैं। कोयला मामले में “ऑफलाइन परमिट” का निर्णय और अवैध लेवी वसूली इसकी जड़ है। कुल 570 करोड़ रुपए की वसूली सिर्फ व्यापारिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि राजनीतिक और प्रशासनिक संरचना को प्रभावित करने के लिए भी इस्तेमाल हुई — यही इसे और बड़ा बनाता है।

