रायपुर में बिल्डर के नाम पर बैंकिंग धोखाधड़ी का है, जिसमें अज्ञात ठगों ने लगभग 8.70 लाख रुपये का फर्जी ट्रांजैक्शन कर लिया। इसे विस्तार से समझते हैं:
1. घटना का सारांश
- स्थान: अमानाका थाना क्षेत्र, रायपुर
- पीड़ित: बिल्डर सुबोध सिंघानिया
- धोखाधड़ी का तरीका: ठगों ने खुद को बिल्डर बताते हुए इंडियन ओवरसीज बैंक से संपर्क किया।
- परिणाम: बैंक ने बिना किसी वाउचर/चेक के 8.70 लाख रुपये RTGS के माध्यम से सीधे आरोपी अवतार सिंह के खाते में ट्रांसफर कर दिए।
- खास बात: महिला डिप्टी मैनेजर ने खुद थाने जाकर FIR दर्ज कराई।

2. पुलिस कार्रवाई
- थाने: अमानाका थाना
- जांच अधिकारी: थाना प्रभारी सुधांशु सिंह बघेल
- तुरंत कार्रवाई: अज्ञात ठगों के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला (FIR) दर्ज किया गया।
- जांच प्रक्रिया:
- साइबर सेल की मदद ली जा रही है।
- आरोपी की पहचान और ट्रांजैक्शन नेटवर्क की पड़ताल की जा रही है।
- यह पता लगाने की कोशिश कि ठगों ने बैंक सुरक्षा कैसे भेद दी।
3. तकनीकी पहलू और जोखिम
- सोशल इंजीनियरिंग: ठगों ने बिल्डर का नाम लेकर बैंक कर्मियों को भरोसे में लिया।
- अनुमानित चूक: बैंक ने किसी वेरिफिकेशन/वाउचर की पुष्टि नहीं की।
- RTGS का दुरुपयोग: बड़ी रकम तुरंत ट्रांसफर हो गई, जिससे ठग लाभ उठा सके।
- सुरक्षा चेतावनी: यह घटना बैंकिंग सिस्टम की सुरक्षा खामियों को उजागर करती है।
4. संभावित कदम बैंक और पुलिस द्वारा
- सुरक्षा समीक्षा: बैंक शाखा के SOP और वेरिफिकेशन प्रक्रिया की समीक्षा।
- ट्रांजैक्शन रोकथाम: बड़े RTGS ट्रांजैक्शन में दोहरी वेरिफिकेशन लागू करना।
- आरोपी की पहचान: साइबर तकनीक, KYC डाटा और बैंक लॉग्स के माध्यम से ट्रेस करना।
- जाल का भंडाफोड़: यह देखने की कोशिश कि ठग अकेले हैं या बड़े नेटवर्क का हिस्सा।
5. निष्कर्ष
- घटना साइबर/सामाजिक इंजीनियरिंग धोखाधड़ी की शिद्दत को दर्शाती है।
- बैंक और ग्राहकों दोनों के लिए सावधानी और वेरिफिकेशन प्रक्रियाओं की मजबूती जरूरी है।
- पुलिस और साइबर सेल मिलकर आरोपी तक पहुंचने की कोशिश कर रही है, जिससे आगे ऐसे मामलों की रोकथाम संभव हो सके।
