यह 75 दिनों तक चलता है और इसमें रावण दहन की परंपरा नहीं होती।
बस्तर दशहरा वास्तव में देश ही नहीं, दुनिया की सबसे अनूठी सांस्कृतिक परंपराओं में गिना जाता है। आइए विस्तार से जानते हैं —
🎉 बस्तर दशहरा : 600 वर्ष पुरानी परंपरा
- यह पर्व छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में मनाया जाता है।
- इसकी शुरुआत लगभग 600 साल पहले बस्तर के राजा पुरुषोत्तम देव के समय से मानी जाती है।
- कहा जाता है कि उन्होंने मां मावली देवी की आराधना के लिए इस पर्व की नींव रखी।

📆 अवधि और विशेषता
- भारत में सबसे लंबा धार्मिक पर्व — कुल 75 दिनों तक चलता है।
- यहाँ का दशहरा रावण दहन से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह पूर्ण रूप से मां दंतेश्वरी देवी की आराधना और परंपराओं पर आधारित है।
- इसलिए इसे “माता का पर्व” भी कहा जाता है।
🙏 देवी दंतेश्वरी की महत्ता
- बस्तर दशहरे का केंद्रबिंदु जगदलपुर स्थित दंतेश्वरी मंदिर है।
- मां दंतेश्वरी को बस्तर अंचल की आराध्य देवी माना जाता है।
- दशहरे के दौरान पूरे बस्तर से आदिवासी समुदाय अपने-अपने देवताओं और परंपरागत झंडों के साथ जगदलपुर पहुँचते हैं।
🌾 उत्सव के प्रमुख चरण
इस पर्व में कई अनुष्ठान और आयोजन शामिल होते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं —
- काछनगाड़ी पूजा – पर्व की शुरुआत का प्रतीक।
- कलश स्थापना – देवी की आराधना।
- डेरोजात्रा – रथ निर्माण और उसका पूजन।
- रत्जात्रा (रथयात्रा) – विशाल लकड़ी के रथ को खींचना, जिसमें हजारों लोग भाग लेते हैं।
- मावली परघाव – मावली माता (दंतेश्वरी की बहन) को उनके मायके से लाया जाता है।
- ओरछा राजघराने की भागीदारी – आज भी पारंपरिक रूप से ओरछा के महाराज इस पर्व में सम्मिलित होते हैं।
✨ रावण दहन क्यों नहीं होता?
- बस्तर दशहरे का संबंध राम-रावण युद्ध से नहीं है।
- यह पर्व पूरी तरह शक्ति की देवी (मां दंतेश्वरी) के प्रति भक्ति, आस्था और सांस्कृतिक उत्सव का प्रतीक है।
- यहां दशहरे का अर्थ है देवी की शक्ति का आवाहन और समाज की एकजुटता।
🌍 वैश्विक पहचान
- बस्तर दशहरा को यूनेस्को की संभावित सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल करने की सिफारिश भी हो चुकी है।
- हजारों देशी-विदेशी पर्यटक इस अद्वितीय पर्व को देखने हर साल जगदलपुर पहुँचते हैं।
👉 सार यह कि बस्तर दशहरा रावण दहन रहित दशहरा है, जो “शक्ति उपासना, परंपरा और सामूहिकता” का सबसे लंबा और अनोखा उत्सव माना जाता है।
