बिलासपुर (बिलासा देवी केवट) एयरपोर्ट के विस्तारीकरण और उससे जुड़ी बैठकों/मुद्दों का व्यवस्थित, विस्तृत और संदर्भ-सहित वर्णन दिया जा रहा है — ताकि आप रिपोर्ट/रिलीज/नोट या सोशल पोस्ट के लिए सीधे उपयोग कर सकें।
1) क्या हुआ (सार)
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने दिल्ली में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की; बैठक में बिलासा देवी केवट (चकरभाठा) एयरपोर्ट के विस्तारीकरण और उससे जुड़ी ज़मीन-हस्तांतरण संबंधी मामले उठाए गए। बैठक में केंद्रीय राज्य मंत्री (आवास व शहरी कार्य) व बिलासपुर सांसद तोखन साहू भी मौजूद रहे।
2) मुख्य अनुरोध — रक्षा की ज़मीन हस्तांतरित करने का मुद्दा
- राज्य सरकार ने रक्षा मंत्रालय के अधीन पड़ी भूमि को नागरिक उपयोग के लिए हस्तांतरित करने का अनुरोध रखा — रिपोर्टों में कहा गया है कि रक्षा के पास कुल लगभग 1012 एकड़ भूमि है, जिनमें से रनवे/विस्तार के लिए लगभग 290 एकड़ की आवश्यकता बतायी गई है; राज्य ने संयुक्त बैठक बुलाकर समस्या का समधान करने का अनुरोध रखा है।
3) एयरपोर्ट का वर्तमान स्वरूप और सेवाएँ — क्यों जरूरी है विस्तार
- बिलासा देवी केवट एयरपोर्ट (Bilasa Devi Kevat Airport, IATA: PAB) का ऐतिहासिक और तकनीकी विवरण तथा वर्तमान स्टेटस उपलब्ध है; यह एयरफ़ील्ड समय-समय पर सिविल उडान सेवाओं के लिए प्रयोग में आया है।
- मार्च 2024 से यहाँ सिड्यूल्ड सेवाएँ (Alliance Air के जरिए दिल्ली और कोलकाता के लिए) शुरू हुईं; साथ ही राज्य/केंद्र ने रात में उतरने (night-landing) और अन्य सुविधाओं के विस्तार की घोषणा/योजना का जिक्र किया है — यानी विस्तार से यातायात क्षमता, कनेक्टिविटी और कारोबारी अवसर बढ़ेंगे।

4) “इंडस्ट्रियल पार्क” और आर्थिक तर्क
- आपकी रिपोर्ट/सूचना में बैठक में एयरपोर्ट परिसरों के निकट इंडस्ट्रियल/लॉजिस्टिक्स पार्क विकसित करने पर भी चर्चा होने का जिक्र है — इस तरह का कदम राज्य की हालिया औद्योगिक नीतियों और निवेश-आकर्षण पहल (One-Click Single Window, Logistics Policy आदि) के अनुरूप होगा और स्थानीय रोजगार-सृजन तथा लॉजिस्टिक लागत घटाने में मदद कर सकता है। (राज्य की औद्योगिक पहलें संदर्भ के लिए देखें)
5) ज़मीन-हस्तांतरण — प्रक्रिया और आम बाधाएँ (कायदा-कानून और व्यवहारिकता)
यह सिर्फ राजनीतिक इच्छाशक्ति का मामला नहीं है — रक्षा भूमि का हस्तांतरण एक औपचारिक प्रक्रिया है, जिसमें कई चरण और शर्तें रहती हैं:
- MoD (डिपार्टमेंट ऑफ डिफेन्स/Directorate of Defence Estates) की निर्धारित प्रक्रिया और नियम लागू होते हैं; राज्यों को प्रायः इन-प्रिंसिपल अनुमोदन, संयुक्त बैठक, वैल्यूएशन/इक्वल-वैल्यू-लैंड (EVL) या मुआवज़ा आदि के लिए जाना पड़ता है।
- देश के विभिन्न प्रोजेक्ट्स (जैसे- पुणे, प्रयागराज आदि) में इसी तरह के उदाहरण रहे हैं जहाँ IAF/Defence से जमीन-हैंडओवर के लिए EVL/वैकल्पिक मुआवज़ा और प्रशासनिक मंजूरी ली जाती है। ये केस-स्टडी यह दिखाते हैं कि समन्वय तथा वैकल्पिक भूमि/कॅश कंपोनेंट पर सहमति निर्णायक होती है।
6) विस्तार के लिए ज़रूरी कदम (प्रायोगिक चरण)
आम तौर पर निम्न-प्रोसेस अपनाया जाता है — जो बिलासपुर केस पर भी लागू होगा:
- राज्य-मंत्रालय × MoD का संयुक्त अवलोकन/सर्वे — किस हिस्से की ज़मीन व किस उपयोग हेतु चाहिए।
- प्राथमिक (in-principle) सहमति और वैल्यूएशन — Equal Value Land (EVL) या नकद मुआवज़ा पर बातचीत।
- डीपीआर/टेक्निकल सर्वे (रनवे एक्सटेंशन, APRON, टरमिनल विस्तार, NATM/ILS/लाइटिंग) — इसके बाद ही ठेके और निर्माण शुरू होते हैं। (AAI/DGCA के मानक और लाइसेंस प्रक्रिया लागू होंगे)।
- पार्यावरण/स्थानीय सहमति, और बुनियादी ढाँचा (रोड/पावर/वॉटर) की व्यवस्था; यदि इंडस्ट्रियल पार्क बनता है तो मई-नोर्मल भूमि-योजनाएँ अलग से होंगी।
- राज्य-केंद्र (वित्त) निर्णय/फंडिंग-मॉडल — केंद्र, राज्य और संभवतः PPP/प्राइवेट निवेश के रूप में फ़ंड उपलब्ध कराना।
7) क्या-क्या लाभ मिलेंगे (संभावित)
- उड़ान-कनेक्टिविटी सुधरने से व्यापार और निवेश आकर्षित होंगे; निकट औद्योगिक क्षेत्रों के साथ लॉजिस्टिक समय और लागत घटेगी।
- विमानन सेवाओं और औद्योगिक पार्क से स्थानीय नौकरियाँ और सप्लाई-चेन वाले रोजगार बढ़ने की सम्भावना है। (यह राज्य की औद्योगिक नीति के लक्ष्यों से मेल खाता है)। Indiatimes
8) जोखिम-बिंदु और चुनौतियाँ
- MoD की शर्तें/मुआवज़ा: रक्षा भूमि सामान्यतः सहजता से छोड़ी नहीं जाती; EVL/compensation मुद्दा जटिल हो सकता है।
- टेक्निकल और नियामक मंज़ूरी: DGCA/AAI मानक, night-landing के लिए अतिरिक्त उपकरण/ILS और सुरक्षा व्यवस्थाएँ चाहिए।
- स्थानीय/पर्यावरणीय मुद्दे: जमीन-उन्मूलन, पेड़/भूमि उपयोग, और पास के गांवों का व्यवहार—सभी का समाधान आवश्यक है।
9) निष्कर्ष — अगले 2-3 अपेक्षित राजनीतिक/प्रशासनिक कदम (आपके लिए संक्षेप)
- आगामी संयुक्त बैठक (राज्य-MoD-सैन्य अधिकारियों) = निर्णायक — Amar Ujala की रिपोर्ट के अनुसार यही माँग रखी गई है।
- सर्वे/DPR का ऑर्डर और तकनीकी टीम का निरीक्षण.
- सहमति मिलने पर चरणबद्ध हस्तांतरण और विस्तारीकरण-कार्य प्रारम्भ। (रात के लैंडिंग और अतिरिक्त मार्ग सेवाओं के लिए DGCA/AAI अनुपालन जरूरी)।
