जिसके कारण अगले सत्र की शुरुआत अधर में लटकी हुई है। शीर्ष फुटबॉल खिलाड़ियों ने कहा है कि “हम खेलना चाहते हैं, समय अब निकल चुका है।
Indian Super League (ISL) की मौजूदा स्थिति व इसके भविष्य पर गहराई से समझना ज़रूरी है, क्योंकि यह भारत में पेशेवर फुटबॉल के बुनियादी ढाँचे को सीधे प्रभावित करता है। नीचे AIFF के बयान, वाणिज्यिक संकट, खिलाड़ियों की प्रतिक्रिया, संभावित समाधान और विशेषज्ञ विश्लेषण — सबका विस्तृत ब्यौरा दिया गया है 👇
🏟️ 1️⃣ वर्तमान स्थिति : ISL का अगला सत्र “अस्थिरता” में
- All India Football Federation (AIFF) ने हाल ही में आधिकारिक रूप से कहा है कि ISL (Indian Super League) के लिए इस बार कोई भी नया वाणिज्यिक बिड (commercial partner or investor bid) प्राप्त नहीं हुआ है।
- इसका सीधा मतलब यह है कि लीग के नए सीज़न (2025-26) की फंडिंग, प्रसारण और आयोजन तिथि अब अस्पष्ट (uncertain) स्थिति में है।
- रिपोर्टों के अनुसार, IMG-Reliance और Football Sports Development Limited (FSDL) — जो ISL का प्रबंधन करती रही हैं — उनकी साझेदारी 2024-25 सत्र के बाद पुनर्संरचना (restructuring) के दौर में है।

👉 AIFF सूत्रों ने कहा है:
“हमने ISL के अगले चक्र के लिए वाणिज्यिक बोलियाँ आमंत्रित की थीं, लेकिन अभी तक कोई ठोस बिड नहीं आई है। इससे कैलेंडर और प्रसारण साझेदारी पर पुनर्विचार चल रहा है।”
💰 2️⃣ वाणिज्यिक संकट क्यों आया?
इसकी जड़ में कुछ बड़े कारक हैं:
- प्रसारण लागत बनाम दर्शकता (Viewership vs Cost) — ISL के शुरुआती वर्षों में भारी निवेश हुआ था, लेकिन दर्शक संख्या में गिरावट आई है (TV और OTT दोनों पर)।
- क्लबों की वित्तीय स्थिति कमजोर — कुछ क्लब लगातार घाटे में चल रहे हैं।
- राष्ट्रीय टीम शेड्यूल और ISL कैलेंडर का टकराव — कई बार ISL मैचों और राष्ट्रीय फुटबॉल कैंप के बीच समय-संघर्ष हुआ।
- स्पॉन्सरशिप की कमी — महामारी के बाद कॉर्पोरेट स्पॉन्सर फुटबॉल में सीमित निवेश कर रहे हैं, क्रिकेट के मुकाबले रिटर्न कम है।
- फुटबॉल इन्फ्रास्ट्रक्चर और दर्शक सहभागिता का असंतुलन — छोटे शहरों में अच्छी दर्शक संख्या होती है, पर वहाँ ब्रॉडकास्ट/स्पॉन्सर वैल्यू कम मिलती है।
⚽ 3️⃣ खिलाड़ियों और कोचों की प्रतिक्रिया
- भारतीय और विदेशी खिलाड़ियों में भविष्य को लेकर चिंता स्पष्ट है।
- कई शीर्ष खिलाड़ियों (जैसे Sunil Chhetri के करीबी सर्कल, Anirudh Thapa, Gurpreet Singh Sandhu इत्यादि) ने कहा है:
“हम खेलने को तैयार हैं — लेकिन शेड्यूल, अनुबंध और वेतन-सुरक्षा पर स्पष्टता चाहिए। हर साल देरी से हमारी ट्रेनिंग और ट्रांसफर प्रभावित होते हैं।”
- कुछ क्लब कोचों ने भी AIFF और FSDL से “प्रारंभिक सूचना और एक स्थायी वित्तीय मॉडल” की मांग की है, ताकि खिलाड़ी-कॉन्ट्रैक्ट्स को समय पर नवीनीकृत किया जा सके।
🧩 4️⃣ AIFF की प्रतिक्रिया और आगे का रोडमैप
AIFF अध्यक्ष कल्याण चौबे और महासचिव शाजी प्रभाकरन ने संकेत दिया है कि:
- यदि ISL के लिए कोई नई वाणिज्यिक बिड नहीं मिलती, तो AIFF स्वयं “National Premier League” जैसे वैकल्पिक मॉडल पर काम कर सकता है।
- इसमें ISL और I-League दोनों को संयुक्त राष्ट्रीय ढांचे (unified league structure) में लाने की योजना पर विचार हो रहा है।
- “One League Policy” की दिशा में FIFA और AFC (Asian Football Confederation) से भी परामर्श चल रहा है।
AIFF ने कहा: “हम नहीं चाहते कि क्लबों या खिलाड़ियों को नुकसान हो — विकल्पों में या तो FSDL से नवीनीकरण या नई एजेंसी के साथ करार होगा।”
📉 5️⃣ विशेषज्ञ दृष्टिकोण — “फुटबॉल को टिकाऊ मॉडल चाहिए”
खेल विश्लेषकों का कहना है कि ISL की यह स्थिति बताती है कि भारत में खेल लीगों को सिर्फ ग्लैमर नहीं, दीर्घकालिक आर्थिक और स्थानीय क्लब प्रणाली की ज़रूरत है।
स्पोर्ट्स बिजनेस एक्सपर्ट अनिरुद्ध दत्ता कहते हैं:
“भारत में फुटबॉल के लिए आकर्षक टीवी पैकेज बनाना मुश्किल है क्योंकि स्थानीय क्लबों के फैन-बेस सीमित हैं। जब तक क्लब खुद-निर्भर नहीं बनेंगे, लीग निवेशकों को लुभा नहीं पाएगी।”
FIFA सलाहकार रिपोर्ट (2023) के अनुसार भी भारत को
- Grassroots system,
- Club licensing & academy standardization,
- और uniform calendar की ओर जाना चाहिए, ताकि ISL जैसे लीग टिकाऊ बन सकें।
🔮 निष्कर्ष — क्या आगे हो सकता है?
| संभावित परिदृश्य | असर |
|---|---|
| ✅ FSDL के साथ नया समझौता | ISL जारी रह सकती है, पर बदले प्रारूप या कम अवधि में |
| ⚠️ नई एजेंसी द्वारा अधिग्रहण | सीजन में देरी, पुनर्गठन, नई ब्रॉडकास्ट रणनीति |
| ❌ अस्थायी स्थगन | खिलाड़ियों का पलायन (I-League या विदेश) और भारत की AFC मान्यता पर असर |
🗞️ सारांश
- ISL के लिए कोई वाणिज्यिक बिड नहीं — अगला सत्र अनिश्चित।
- AIFF वैकल्पिक ढांचे पर विचार कर रहा है (संभवतः एकीकृत “Premier League of India”)।
- खिलाड़ी व कोच चिंतित, स्थायी कैलेंडर और कॉन्ट्रैक्ट सुरक्षा की मांग।
- स्पॉन्सरशिप व दर्शक भागीदारी घटने से आर्थिक संकट गहराया।
- भविष्य की दिशा: टिकाऊ, क्लब-आधारित, और राष्ट्रीय ढांचे से जुड़ा मॉडल जरूरी।
