इस साल संविधान दिवस (26 नवंबर) के मौके पर मायावती द्वारा देने गए बयान और उनका राजनीतिक-सामाजिक संदर्भ — तथा उससे जुड़े इतर सुरों की जानकारी है:
🔹 मायावती का बयान — क्या कहा उन्होंने
- मायावती ने अपने सोशल-मीडिया पोस्ट में कहा कि आज देश संविधान दिवस मना रहा है, और इस मौके पर वे संविधान के मुख्य निर्माता एवं बहुजन समाज के मसीहा डॉ. भीमराव आंबेडकर को “पूरे तहेदिल से शत्-शत् नमन” करती हैं।
- उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों से उम्मीद जताई कि वे संविधान दिवस मनाने तक सीमित न रहकर, संविधान के “समतामूलक, मानवतावादी एवं कल्याणकारी” उद्देश्यों को ईमानदारी और निष्ठा से लागू करें — और जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप काम करें।

“केन्द्र व राज्य सरकारें संविधान दिवस मनाने के साथ-साथ संविधान के समतामूलक, मानवतावादी व कल्याणकारी उद्देश्यों पर ईमानदारी एवं निष्ठा से अमल करके जनता की अपेक्षाओं को जरूर पूरा करेंगी — यही समय की मांग है।”
- उन्होंने नारे दिए: “जय भीम, जय भारत व जय संविधान।”
इस तरह, उन्होंने न सिर्फ सम्मान दिखाया, बल्कि जनकल्याण, सामाजिक न्याय और संविधान की आत्मा के वास्तविक अर्थों पर सरकारों की जवाबदेही याद दिलाई।
🔹 पृष्ठभूमि — मायावती और संविधान दिवस: हाल की साझेदारी नहीं
हालाँकि इस वर्ष उन्होंने सकारात्मक स्वर में ये बातें कही हैं, लेकिन मायावती का संविधान दिवस के संबंध में इतिहास कुछ अलग रहा है — खास कर जब जमीनी हक़ीक़त की बात आती है।
- 2021 में, उन्होंने कहा था कि SC/ST समुदायों को संविधान द्वारा दिए गए सामाजिक व आर्थिक अधिकार — आरक्षण व अन्य — जमीनी स्तर पर नहीं मिले। इसलिए उनकी पार्टी Bahujan Samaj Party (बसपा) ने उस बार केंद्र व राज्य द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में हिस्सा नहीं लिया था।
- मायावती ने कहा था कि सरकारों को ऐसा नहीं लगता कि वे संविधान के आदर्शों के मुताबिक — विशेष रूप से सामाजिक न्याय, आरक्षण, समानता — काम कर रही हैं। इस कारण “उन्हें संविधान दिवस मनाने का नैतिक अधिकार नहीं है।”
- उन्होंने उस समय यह भी कहा था कि केवल दिखावे (celebration) से काम नहीं चलेगा — असल में संविधान के कारण बने प्रावधानों का लाभ दलित, पिछड़े, वंचित वर्गों को मिलना चाहिए।
इस पृष्ठभूमि के साथ, इस साल का उनका बयान वैसा नहीं था जैसा पहले — यानी, उन्होंने जनता से सिर्फ घोषणात्मक सम्मान नहीं, बल्कि “ईमानदार अमल” की मांग की है।
🔹 उनका बयान इस समय क्यों महत्वपूर्ण है
- आज का भारत — सामाजिक, आर्थिक असमानताएं, आरक्षण और सामाजिक न्याय के मुद्दे — इन सब पर संवेदनशील दौर से गुजर रहा है। जब विपक्षी पार्टियों की ओर से संविधान की मूल भावना और उसकी रक्षा पर आवाज उठ रही है, ऐसे समय में मायावती की मांग “संविधान की आत्मा के साथ न्याय” की है।
- मुख्यमंत्री और अन्य शासक दलों خاصة Bharatiya Janata Party (भाजपा) से उम्मीद की गई है कि वे सिर्फ समारोह तक सीमित न रहें, बल्कि जमीन पर नीतियों और कार्यान्वयन में संविधान के मूल लक्ष्य — समानता, समता, सामाजिक न्याय, कल्याण — को आत्मसात करें।
- जो वोट-बैंक, वंचित, दलित, पिछड़े समाज के लोग लंबे समय से आरक्षण, समान अधिकार और कल्याण की मांग कर रहे हैं — उनके लिए ये बयान एक ध्यान दिलाने वाला संकेत हो सकता है।
🔹 कैसे देखा जा रहा है — राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं
- इस साल दूसरे विपक्षी नेताओं — जैसे ममता बनर्जी — ने भी संविधान दिवस पर किया है कि “धर्मनिरपेक्षता, संघवाद, लोकतंत्र खतरे में है”। वे लोग कह रहे हैं कि संविधान की मूल भावना व उसके प्रतिपादन पर सवाल उठे हैं।
- ऐसे में, मायावती का बयान एक तरह से उन आवाज़ों में जुड़ना है, जहाँ कहा जा रहा है कि सिर्फ संविधान दिवस मनाना ही नहीं, बल्कि संविधान की आत्मा के अनुरूप कार्य करना ज़रूरी है।
🔹 मायावती के पुराने वादे और जनता की उम्मीद — अब क्या?
- मायावती लंबे समय से यह आवाज़ उठा रही हैं कि आरक्षण, सामाजिक न्याय, कल्याणकारी नीतियाँ — केवल काग़ज़ों तक सीमित न रहें, असल जमीन पर लागू हों। 2021-2024 के दौर में उन्होंने खुलकर कहा कि संविधान की वचनों का लाभ वंचितों तक नहीं पहुंचा है.
- इस वर्ष उनका बयान उद्देश्य को थोड़ा बदलता दिखता है: समारोह/पर्चेबाजी से आगे — सरकारों से ठोस काम की उम्मीद। यह उम्मीद है कि बसपा या भारत में अन्य दल, संविधान के आदर्शों को दोबारा जीवित कराने की दिशा में लगातार दबाव बनाए रखें।
