दंतेवाड़ा जिले में करोड़ों रुपये की लागत से बनी जल योजनाओं की हकीकत सामने आने के बाद प्रशासन पर सवाल खड़े हो गए हैं। नेरली–धुरली और गमावाड़ा जलप्रदाय परियोजना पर करीब 40 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद जिन गांवों तक पानी पहुंचना था, वहां आज भी लोग पेयजल के लिए जूझ रहे हैं।

8 गांवों के लिए बनी योजना, लाभ सिर्फ एक को
जानकारी के अनुसार, इस परियोजना के तहत 8 गांवों को नियमित पेयजल उपलब्ध कराना था, लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि सिर्फ एक गांव को ही ठीक से पानी मिल पा रहा है। बाकी गांवों के ग्रामीण अब भी पानी के लिए दूर-दराज के स्रोतों पर निर्भर हैं।
मीडिया में मुद्दा उठने के बाद हरकत में आया प्रशासन
मामला मीडिया में सामने आने के बाद जिला प्रशासन सक्रिय हुआ। कलेक्टर देवेश ध्रुव ने स्वयं मौके पर पहुंचकर परियोजना का निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान कई खामियां सामने आईं, जिनमें अधूरी पाइपलाइन और तकनीकी कमियां प्रमुख हैं।
“योजना का मतलब सिर्फ निर्माण नहीं, पानी पहुंचाना है” – कलेक्टर
निरीक्षण के दौरान कलेक्टर ने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश देते हुए कहा कि जल योजना का उद्देश्य केवल ढांचा खड़ा करना नहीं, बल्कि हर गांव तक पानी पहुंचाना है। जहां प्लांट स्थापित किया गया है, वहीं तक पानी सीमित रह जाना गंभीर लापरवाही को दर्शाता है।
ग्रामीणों में नाराजगी, खुद को बता रहे ठगा हुआ
जल संकट से जूझ रहे गांवों के ग्रामीणों में भारी नाराजगी देखी जा रही है। उनका कहना है कि करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद अगर पानी नहीं मिल रहा, तो यह उनके साथ अन्याय है। ग्रामीण खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
समयबद्ध समाधान के निर्देश
कलेक्टर ने संबंधित अधिकारियों को समयबद्ध समाधान के निर्देश दिए हैं।
- तीन गांवों के लिए तत्काल तकनीकी प्रस्ताव तैयार करने को कहा गया है।
- शेष पांच गांवों के लिए अलग से वैकल्पिक समाधान तैयार किया जाएगा।
- इसके साथ ही वैकल्पिक जल स्रोतों और रिचार्ज प्लान पर भी काम करने के निर्देश दिए गए हैं।
अब देखना यह होगा कि 40 करोड़ की यह जल योजना कब कागजों से निकलकर वास्तव में ग्रामीणों की प्यास बुझा पाती है।
