जगदलपुर l जगदलपुर भूपेन्द्र बरैया बस्तर राजपरिवार में विवाह वर्षों पुरानी परंपराओं की शुरुआत करने वर्तमान बस्तर नरेश कमल चंद भंज देव ने मां दंतेश्वरी को दिया न्योता पहली बार बस्तर की सीमा से बाहर जाएगी मां दंतेश्वरी का दंड व छत्र
बस्तर राजपरिवार में 20 फरवरी को होने वाले विवाह समारोह की तैयारियां जोरों पर हैं। इस ऐतिहासिक आयोजन में परंपराओं का विशेष रूप से पालन किया जा रहा है। परंपरा के अनुसार, सबसे पहले मां दंतेश्वरी को विवाह का विधिवत निमंत्रण भेजा गया और उनसे अनुमति ली गई। यह प्राचीन रीति न केवल राजपरिवार की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाती है, बल्कि बस्तर की आस्था और परंपराओं में माता दंतेश्वरी की सर्वोच्चता को भी उजागर करती है।

इस बार विवाह समारोह में एक ऐतिहासिक पहल होने जा रही है, क्योंकि यह पहली बार होगा जब मां दंतेश्वरी का छत्र बस्तर की सीमाओं से बाहर, दूसरे राज्य तक जाएगा।
राजपरिवार की परंपरा और ऐतिहासिक संदर्भ

इसे पहले बस्तर के महाराजा रुद्र प्रताप देव ने 1921 में अपने विवाह समारोह के दौरान पहली बार मां दंतेश्वरी के छत्र और दंड (छड़ी) कलश स्थापना करवा के अपने वैवाहिक कार्यक्रम में आशीर्वाद पाने हेतु स्थापित करवाया था व शादी पूर्ण होने के पश्चात पुनः इसे माई दंतेश्वरी के धाम दंतेवाडा में रखवाया था । इसके पश्चात महाराज प्रवीण चंद्रभंज देव, विजय चंद्रभंज देव और भारत चंद्रभंज देव ने इस परंपरा को आगे नहीं बढ़ाया। लेकिन अब बस्तर के वर्तमान महाराज कमल चंद भंज देव ने इस प्रथा को पुनः प्रारंभ करने का निश्चय किया है, जिससे यह विशिष्ट परंपरा फिर से जीवंत हो रही है।
मां दंतेश्वरी को आमंत्रण और पूजन अनुष्ठान

बस्तर राजपरिवार की ओर से मां दंतेश्वरी को विवाह का विधिवत आमंत्रण पत्र भेजा गया। इस आमंत्रण में आग्रह किया गया कि विवाह के दौरान मां के छत्र और छड़ी की स्थापना की जाए। दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी हरेंद्र नाथ जिया ने बताया कि यह परंपरा अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि बस्तर में हर शुभ कार्य माता की अनुमति से ही संपन्न होता है।
मां दंतेश्वरी की स्वीकृति मिलने के बाद, मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और वैदिक अनुष्ठान किए गए। मंत्रोच्चार और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ छत्र और छड़ी को मंदिर प्रांगण से बाहर लाने की रस्म संपन्न हुई। इस पावन अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु, मंदिर सेवादार और स्थानीय लोग उपस्थित रहे।
छत्र और छड़ी को सलामी, शोभायात्रा निकली
परंपरा के अनुसार, मां दंतेश्वरी के छत्र और छड़ी को पुलिस जवानों द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर (सलामी) दी गई। इसके बाद, मंदिर के पुजारी, सेवादार और 12 लंकवारों द्वारा मां के प्रतीक स्वरूपों को जय स्तंभ चौक तक शोभायात्रा के रूप में ले जाया गया। यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं ने “जय मां दंतेश्वरी” के जयघोष के साथ अपनी श्रद्धा प्रकट की।
बस्तर की परंपराओं की जीवंत झलक
इस पूरी प्रक्रिया ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि बस्तर में राजनीति, संस्कृति और परंपराएं मां दंतेश्वरी के आशीर्वाद के बिना अधूरी हैं। बस्तर राजपरिवार की इस ऐतिहासिक विवाह परंपरा से स्थानीय लोगों की गहरी आस्था और सांस्कृतिक पहचान जुड़ी हुई है।
इस आयोजन के माध्यम से न केवल बस्तर की समृद्ध परंपराओं और मां दंतेश्वरी की महिमा को पुनः स्थापित किया जा रहा है, बल्कि इस बार छत्र के बस्तर की सीमा से बाहर जाने के ऐतिहासिक निर्णय के साथ, परंपराओं को एक नया आयाम भी मिल रहा है।