मनोरंजन l यह फिल्म तैयार करने से पहले उन्हें एक और प्रोजेक्ट से भी बाहर कर दिया गया था.अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘ज़ंजीर’ (1973) बॉलीवुड के इतिहास की सबसे आइकॉनिक टर्निंग पॉइंट्स में से एक मानी जाती है। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं थी—बल्कि एक ‘एंग्री यंग मैन’ की छवि का जन्म और एक सुपरस्टार की पुनरावृत्ति थी।
🎭 शुरुआत का दौर: लगातार नाकामियां
- 1969 में फिल्म सात हिंदुस्तानी से उन्होंने बॉलीवुड में कदम रखा, लेकिन इसके बाद करीब 16 फिल्मों में काम किया जो या तो फ्लॉप रहीं या कोई खास पहचान नहीं बना सकीं।
- फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें ‘अलुभावन चेहरा’ कहा गया—लंबी कद-काठी, गंभीर लहजा और कोई खास स्टार लुक न होने के कारण डायरेक्टर उन्हें लेने में हिचकते थे।
- उस समय के एक स्थापित अभिनेता राजेश खन्ना जैसे रोमांटिक नायकों का दौर चल रहा था, और अमिताभ उस फ्रेम में फिट नहीं बैठते थे।

🎬 ‘ज़ंजीर’ कैसे मिली?
- ‘ज़ंजीर’ की स्क्रिप्ट सलीम-जावेद (सलीम खान और जावेद अख्तर) की लिखी हुई थी। इस फिल्म के लिए पहले राज कुमार, धर्मेंद्र, देवानंद जैसे बड़े सितारों को अप्रोच किया गया—but सभी ने मना कर दिया।
- सलीम-जावेद ने जिद की थी कि अमिताभ को ही लिया जाए, क्योंकि उन्होंने अमिताभ की एक परफॉर्मेंस में उनके गुस्से और गहराई को देखा था।
🎤 सलीम खान ने कहा था:
“अगर ज़ंजीर में अमिताभ को नहीं लिया गया, तो हम स्क्रिप्ट वापस ले लेंगे।”
🚫 फिल्म से निकाले जाने की घटना
- एक और दिलचस्प मोड़ ये था कि ‘ज़ंजीर’ साइन करने से पहले ही अमिताभ को एक दूसरी फिल्म से निकाल दिया गया था क्योंकि उस प्रोड्यूसर को यकीन नहीं था कि वह बॉक्स ऑफिस पर चले पाएंगे।
- इस घटना ने उन्हें और भी ज्यादा मानसिक रूप से कमजोर कर दिया था—वो लगभग फिल्म इंडस्ट्री छोड़ने का मन बना चुके थे।
🔥 ‘ज़ंजीर’ की रिलीज़ और धमाका
- 1973 में जब ‘ज़ंजीर’ रिलीज़ हुई, तो अमिताभ बच्चन की गंभीर, गुस्सैल पुलिस अफसर ‘विजय’ की भूमिका ने दर्शकों को झकझोर दिया।
- यह फिल्म एक ब्लॉकबस्टर बनी और उन्होंने पहली बार बॉलीवुड में “एंग्री यंग मैन” की पहचान बनाई।
🏆 इसके बाद का सफर
- ज़ंजीर के बाद उन्होंने दीवार, शोले, त्रिशूल, डॉन, अमर अकबर एंथनी जैसी फिल्में कीं और 1970–80 के दशक के सर्वाधिक सफल अभिनेता बन गए।
- ‘ज़ंजीर’ की वजह से उन्हें ‘शहंशाह’, ‘सदी का महानायक’, और ‘Big B’ जैसे उपनाम मिले।
📌 निष्कर्ष:
अमिताभ की यह वापसी आज भी उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो संघर्ष में हैं और हार मानने के करीब हैं।
16 फ्लॉप फिल्मों के बाद भी हार न मानना, सलीम-जावेद का भरोसा और ‘ज़ंजीर’ जैसी फिल्म का आना एक चमत्कारी मोड़ था।