रायपुर l आज ED की छापेमारी के बीच पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल विधानसभा सत्र में पहुंचे, जहाँ फर्श पर कांग्रेस विधायकों ने उनका स्वागत किया और सदन के भीतर “भूपेश बघेल जिंदाबाद” के नारे लगने से राजनीतिक माहौल गरमा गया।

🏛️ घटना का पूरा विवरण
- ED की ताज़ा कार्रवाई: आज सुबह लगभग 6 बजे, प्रवर्तन निदेशालय ने रायपुर के भिलाई स्थित बघेल के निवास पर छापेमारी की थी। बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया था—इसकी सूचना सामने आते ही भीतर और बाहर हड़कंप मच गया।
- विधानसभा में प्रवेश: ED छापे की खबर के बावजूद, भूपेश बघेल समर्थकों और कांग्रेस विधायकों के साथ मानसून सत्र में शामिल हुए। उनके प्रवेश के समय सदन में सुर: “भूपेश बघेल जिंदाबाद!” का उद्घोष गूंजा, जो सदन की कार्यवाही में अचानक राजनीतिक<Tuple forced? – नाटकीय गर्मी लेकर आया।
📣 विधायक सभा का रवैया
- कांग्रेस विधायकों ने भूपेश बघेल को इस संकट की घड़ी में पूरा समर्थन दिखाया और उनकी जबरदस्त नैतिक एकजुटता का प्रदर्शन किया।
- ये नारे राजनीतिक समरूपता का संकेत थे, जिसका मकसद था ED की कार्रवाई को राजनीतिकरण करार देना और सदन में एकता दिखाना ।
🧭 स्थिति की राजनीति और संदेश
क्या संकेत मिलता है? | विवरण |
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प्रतिरोध एवं आत्मविश्वास | भूपेश बघेल और कांग्रेस विधायकों ने ED की कार्रवाई को चुनौती देते हुए स्पष्ट किया कि वे डरते नहीं और पीछे नहीं हटते। |
प्रतिभूति का प्रदर्शन | “जिंदाबाद” नारों से यह संदेश आया कि विरोधियों की कोशिशें कांग्रेस को प्रभावित नहीं कर सकतीं। |
राष्ट्रवाद एवं लोकयोग्यता | सदन में ऐसे रास्ते अपनाने से भूपेश-बघेल की छवि मजबूत बनी कि वे जननायक हैं और राजनीतिक दबावों से जूझने का मातृपक्षी नेतृत्व दिखाते हैं। |
🧩 वर्तमान परिदृश्य और आगे की राह
- ED की दूसरी छापेमारी ने छत्तीसगढ़ की राजनीति में राजनीतिक तकरार को बढ़ाया है—जहाँ एक ओर भ्रष्टाचार निरोधी एजेंसियों का अधिकार, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस का प्रतिरोध।
- विधानसभा में विरोध और नारेबाजी इस साक्षात्कार को सिद्ध करते हैं कि आने वाले समय में ये विषय चुनावी व राजनीतिक मंचों पर गर्मागर्म बने रहने की संभावना है।
✅ निष्कर्ष
ED की कार्रवाई के तुरंत बाद विधानसभा में विधायकों की ओर से “भूपेश बघेल जिंदाबाद” का नारा स्पष्ट संदेश भेजता है:
भाजना या दबाव से कांपने वाला व्यक्ति नहीं, बल्कि एक राजनीतिक आदर्श, जिसने विरोध की आवाज को सदन के भीतर ही मुखर किया।
इस राजनीतिक प्रतिरोध की गूँज आगामी महीनों के सियासी संघर्षों की राह तय कर सकती है।