छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने राज्य सरकार द्वारा लागू बिजली बिल पर मिलने वाली छूट (हाफ योजना) को बंद करने की नीतिगत कार्रवाई के खिलाफ 7 अगस्त को पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है। कांग्रेस का आरोप है कि इस निर्णय से आम जनमानस पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा और सत्ता पक्ष ने जनता के हितों की उपेक्षा की है।
क्या है बिजली बिल ‘हाफ योजना’?
बिजली बिल ‘हाफ योजना’ छत्तीसगढ़ की पिछली कांग्रेस सरकार द्वारा चलाई गई एक जनहितकारी योजना थी, जिसके तहत घरेलू उपभोक्ताओं को उनके मासिक बिजली बिल का 50% तक का अनुदान (सब्सिडी) मिलता था। यह योजना गरीब, मध्यम वर्गीय और ग्रामीण परिवारों को ध्यान में रखते हुए शुरू की गई थी।
❌ वर्तमान स्थिति — योजना बंद:
2025 में विष्णु देव साय के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने इस योजना को नीतिगत निर्णय के तहत समाप्त कर दिया है।
राज्य सरकार का तर्क है:
- राज्य पर आर्थिक भार बढ़ रहा था।
- योजना के दुरुपयोग की भी शिकायतें मिल रही थीं।
- सरकार अब लक्षित लाभार्थियों के लिए वैकल्पिक योजनाओं पर काम कर रही है।
⚠️ विपक्ष (कांग्रेस) का विरोध:
कांग्रेस ने इस फैसले को जनविरोधी बताया और कहा कि:
- यह फैसला गरीबों की जेब पर सीधा वार है।
- सरकार की यह नीति मंहगाई से जूझ रहे परिवारों की मुश्किलें और बढ़ा देगी।
- पिछली सरकार की लोक-कल्याणकारी योजनाओं को जानबूझकर समाप्त किया जा रहा है।
👉 इसलिए 7 अगस्त 2025 को पूरे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस द्वारा विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया।
विरोध के तहत:
- ब्लॉक स्तर पर रैलियां
- विधानसभा क्षेत्रों में धरना
- और राजधानी रायपुर में प्रदर्शन किया गया।
🗣️ कांग्रेस नेताओं के बयान:
- टीएस सिंहदेव (पूर्व उप मुख्यमंत्री): “साय सरकार को गरीबों की चिंता नहीं। यह फैसला उनके खिलाफ सीधा हमला है।”
- चरनदास महंत: “बिजली बिल हाफ योजना को बंद करना राजनीतिक बदले की भावना है।”
📊 असर और प्रतिक्रिया:
- आम जनता, खासकर ग्रामीण और निम्न आय वर्ग के लोगों में नाराजगी देखी जा रही है।
- भाजपा सरकार की छवि पर भी लोकप्रिय योजनाएं बंद करने का आरोप लग रहा है।
- राज्य सरकार ने संकेत दिया है कि वह नई लक्षित सब्सिडी योजना लाने की योजना बना रही है, जिसमें केवल जरूरतमंदों को सहायता दी जाएगी।
✅ निष्कर्ष:
- यह मुद्दा छत्तीसगढ़ में 2025 के दूसरे भाग में एक प्रमुख सियासी विवाद का रूप ले रहा है।
- जहां सरकार आर्थिक अनुशासन और लक्षित सहायता की बात कर रही है, वहीं विपक्ष इसे गरीब विरोधी और जनविरोधी निर्णय बता रहा है।
- आगामी महीनों में यह मामला विधानसभा के भीतर और बाहर प्रमुख राजनीतिक बहस बना रह सकता है।