“संशय सबूत नहीं”बस्तर क्षेत्र के दो लोगों को विस्फोटक रखने और नक्सल से जुड़े होने के आरोप में आरोपमुक्त रखने का न्यायालय ने समर्थन करते हुए कहा कि “संशय सबूत के स्थान पर प्रमाण जरूरी हैं।”
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के इस फैसले में न्यायालय ने एक बेहद महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत को दोहराया—कि केवल संशय (संदेह) किसी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं होता, बल्कि स्पष्ट और ठोस प्रमाण होना जरूरी है।
मामले की पृष्ठभूमि
- बस्तर क्षेत्र के दो व्यक्तियों पर आरोप था कि वे विस्फोटक सामग्री रखते थे और नक्सली गतिविधियों से जुड़े हुए हैं।
- पुलिस ने इनके पास से बरामद सामान को सबूत बताते हुए मामला दर्ज किया था।
- निचली अदालत में भी आरोप पर विचार हुआ, लेकिन पर्याप्त प्रत्यक्ष प्रमाण पेश नहीं किए जा सके।
हाई कोर्ट का निर्णय
- न्यायालय ने कहा कि भारतीय दंड प्रक्रिया में “संशय” (suspicion) को “सबूत” (evidence) के बराबर नहीं माना जा सकता।
- यदि अभियोजन पक्ष (prosecution) ठोस, प्रत्यक्ष और विश्वसनीय साक्ष्य पेश नहीं करता, तो आरोपी को दोषमुक्त किया जाना चाहिए।
- अदालत ने यह भी कहा कि न्याय केवल तभी हो सकता है जब किसी व्यक्ति को बिना ठोस प्रमाण के सजा न दी जाए, चाहे उस पर कितने भी गंभीर आरोप क्यों न हों।

फैसले का महत्व
- यह निर्णय न्यायिक व्यवस्था में “Presumption of Innocence” (जब तक दोष सिद्ध न हो, व्यक्ति निर्दोष है) के सिद्धांत को मजबूत करता है।
- खासकर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में, जहाँ कई बार बिना पर्याप्त सबूत के गिरफ्तारियाँ हो जाती हैं, यह फैसला एक महत्वपूर्ण नज़ीर (precedent) है।
- इससे पुलिस और जांच एजेंसियों को यह संदेश गया कि सिर्फ शक या परिस्थितिजन्य बयान के आधार पर केस साबित नहीं किया जा सकता।