“छत्तीसगढ़… जहाँ 34% आबादी आदिवासी है, लेकिन सत्ता की कुर्सी पर उनकी असली पहचान को जगह मिलने में पूरे 24 साल लग गए।

राज्य निर्माण के बाद से ही आदिवासी राजनीति ‘असल’ और ‘नकली’ की बहस में उलझी रही। 90 विधानसभा सीटों में से 29 और 11 लोकसभा में से 4 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित होने के बावजूद… राजनीतिक ताकत हमेशा सवर्ण नेतृत्व के हाथों में रही।
📌 शुरुआत में जब विद्याचरण शुक्ल ने पृथक छत्तीसगढ़ आंदोलन खड़ा किया, तो इसके जवाब में अजीत जोगी और वासुदेव चंद्राकर ने ‘आदिवासी एक्सप्रेस’ यात्रा निकाली।
👉 इस यात्रा का असली मकसद था श्यामाचरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा जैसे नेताओं के वर्चस्व को चुनौती देना।
👉 नतीजा ये हुआ कि दिल्ली की ताक़तवर लॉबी के दम पर अजीत जोगी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने।
लेकिन कहानी यहीं से नहीं रुकी…
जोगी का तीन साल का कार्यकाल इतना विवादों से घिरा रहा कि आदिवासी राजनीति को सबसे बड़ा झटका लगा।
➡️ असली और नकली आदिवासी का फर्क राजनीति में गूंजता रहा।
➡️ कांग्रेस 15 साल तक सत्ता से बाहर रही।
और अब…
जब विष्णुदेव साय राज्य के पहले “असल आदिवासी मुख्यमंत्री” बने हैं, तब जाकर आदिवासी समाज को लग रहा है कि उन्हें सच में ‘न्याय’ मिला है।