स्वतंत्रता से लेकर आज तक मध्यप्रदेश ने खेलों के क्षेत्र में एक लंबी और प्रेरणादायक यात्रा तय की है। जिस दौर में खेल केवल एक सीमित दायरे में सिमटे हुए थे, आज वही मध्यप्रदेश खेल प्रतिभा का गढ़ बनकर भारत के खेल मानचित्र पर अपनी अलग पहचान बना चुका है।

प्रदेश के खिलाड़ियों ने अपनी मेहनत, समर्पण और जज़्बे के दम पर न केवल राज्य बल्कि पूरे देश का नाम रोशन किया। शुरुआती दशकों में जहाँ खेल का दायरा सीमित था, वहीं समय के साथ खेल संस्कृति पूरे प्रदेश में मजबूत होती गई।
इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और उज्जैन जैसे शहर धीरे-धीरे खेल प्रतिभा के केंद्र बने।
- इंदौर ने क्रिकेट को नई पहचान दिलाई और कई दिग्गज खिलाड़ी यहीं से निकले।
- भोपाल हॉकी की धरती कहलाया, जहाँ से कई अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी सामने आए।
- ग्वालियर ने एथलेटिक्स और अन्य खेलों में योगदान दिया।
- उज्जैन ने पारंपरिक खेल मल्लखम्ब को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
आज स्थिति यह है कि प्रदेश के शहर ही नहीं बल्कि ग्रामीण इलाकों के खिलाड़ी भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने खेल कौशल का प्रदर्शन कर रहे हैं। गाँव-गाँव में खेलों की पहुँच ने युवाओं के बीच ऊर्जा, अनुशासन और आत्मविश्वास का संचार किया है।
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा हाल के वर्षों में खेलों के बुनियादी ढाँचे, खेल अकादमियों और प्रशिक्षण सुविधाओं पर दिया जा रहा ध्यान इस यात्रा को और गति प्रदान कर रहा है। यही कारण है कि आज मध्यप्रदेश न सिर्फ क्रिकेट और हॉकी बल्कि तीरंदाजी, शूटिंग, कुश्ती और तैराकी जैसे खेलों में भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रहा है।
मध्यप्रदेश की यह खेल यात्रा इस बात का उदाहरण है कि यदि खिलाड़ियों को सही अवसर, संसाधन और प्रोत्साहन मिले तो वे किसी भी क्षेत्र में राज्य और देश का नाम रोशन कर सकते हैं।