स्थान और आयोजन
- आयोजन स्थल: रंजीतनगर
- आयोजक: पटेल युवक मंडल
- समय: नवरात्रि के अवसर पर (पिछले 15 वर्षों से यह परंपरा यहाँ निभाई जा रही है)।
- स्वरूप: गरबा का विशेष रूप — अंगारा रास

परंपरा और इतिहास
- प्राचीनता: यह रास केवल 15 साल से नहीं, बल्कि इसकी जड़ें लगभग 7 दशकों पुरानी बताई जाती हैं।
- पहले भी इस प्रकार का अंगारा रास खेला जाता रहा है, लेकिन अब यह रंजीतनगर की खास पहचान बन गया है।
- परंपरा में कपास के बीजों को जलाकर अंगारे तैयार किए जाते हैं।
विधि और प्रक्रिया
- सबसे पहले कपास के बीज जलाए जाते हैं।
- अंगारे पूरी तरह लाल-धधकते हुए बिछाए जाते हैं।
- युवक हाथों में मशाल लेकर और ढोल-नगाड़ों की गूंज के बीच गरबा (रास) करते हैं।
- लगभग 12 खेलैया (पुरुष खेलाड़ी) धधकते अंगारों पर उतरते हैं।
- वे लगातार 10 मिनट तक माताजी की आराधना करते हुए गरबा नृत्य करते हैं।
तैयारी और साधना
- यह साधारण प्रदर्शन नहीं है — इसे करने के लिए लगातार 2 महीने की कड़ी प्रैक्टिस की जाती है।
- खेलैयों को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार किया जाता है ताकि वे बिना चोट के अंगारों पर नृत्य कर सकें।
- इसे एक प्रकार की साधना और माताजी के प्रति आस्था के रूप में देखा जाता है।
आकर्षण और महत्व
- इस अनोखे आयोजन को देखने के लिए दूर-दूर से लोग बड़ी संख्या में उमड़ते हैं।
- धधकते अंगारों पर रास खेलना एक साहस, तपस्या और आस्था का संगम माना जाता है।
- यह रास अब रंजीतनगर और आसपास की धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान बन चुका है।
👉 संक्षेप में, अंगारा रास सिर्फ एक गरबा नहीं बल्कि आस्था, परंपरा और शौर्य का अनूठा प्रदर्शन है — जहाँ युवा माताजी की भक्ति में तपते अंगारों पर कदमताल करते हैं।
