फिल्म “माटी” (MAATI) छत्तीसगढ़ी सिनेमा की एक बेहद महत्वपूर्ण और भावनात्मक रचना बनने जा रही है। यह फिल्म सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि बस्तर की मिट्टी, उसकी आत्मा, उसके संघर्ष और उसकी उम्मीदों की आवाज़ है। आइए विस्तार से जानते हैं इसके बारे में —
🎬 फिल्म का नाम: माटी (MAATI)
रिलीज़ डेट: 14 नवंबर 2025
भाषा: छत्तीसगढ़ी
निर्माता: संपत झा
निर्देशक: अविनाश प्रसाद
निर्माण संस्था: चन्द्रिका फिल्म्स प्रोडक्शन

🌾 कहानी की पृष्ठभूमि — ‘बारूद से महक तक की यात्रा’
फिल्म “माटी” की कहानी बस्तर के उस हिस्से से जुड़ी है, जिसने दशकों तक हिंसा, नक्सलवाद और गोलियों की आवाज़ सुनी। लेकिन इस बार बस्तर की यही धरती खुद अपनी कहानी सुनाएगी — दर्द की नहीं, बल्कि पुनर्जन्म और शांति की कहानी।
यह कहानी भीमा और उर्मिला की है —
दो साधारण इंसान, जो असाधारण परिस्थितियों में प्रेम को जन्म देते हैं।
जहां चारों ओर डर, बारूद और मौत का साया है, वहीं इन दोनों के बीच जन्म लेता है “माटी से प्रेम” — यानी अपनी भूमि, अपनी पहचान, अपने अस्तित्व से प्रेम।
🎭 फिल्म का संदेश
निर्माता संपत झा ने कहा है —
“हमारा मकसद बस्तर की नकारात्मक छवि को तोड़ना है।
दुनिया को बताना है कि यहां सिर्फ संघर्ष नहीं, बल्कि संस्कृति, संगीत, अपनापन और आत्मा की सुंदरता भी है।”
यह फिल्म किसी नायक या खलनायक की नहीं, बल्कि “इंसानियत” की कहानी है।
यह उन निर्दोष ग्रामीणों, शहीद जवानों और आत्मसमर्पित माओवादियों की अधूरी दास्तान है, जिन्हें इतिहास ने कभी जगह नहीं दी।
🎥 फिल्म की खासियतें
- 🎬 लोकल कलाकारों का योगदान —
फिल्म में सभी कलाकार स्थानीय हैं — शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता और लगभग 40 आत्मसमर्पित माओवादी भी अभिनय कर रहे हैं।
यानी जिन्होंने कभी हथियार उठाए थे, वे अब कैमरे के सामने शांति का संदेश दे रहे हैं। - 🌄 बस्तर की असली झलक —
बस्तर के जंगल, नदियाँ, लोकगीत, त्योहार और जनजातीय संस्कृति को बेहद खूबसूरती से दिखाया गया है।
यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि “बस्तर का डॉक्यूमेंट्री-आधारित अनुभव” है। - 🎶 संगीत और लोकगीत —
पारंपरिक बस्तर के गीतों और ढोल-मादल की धुनों को फिल्म में सजीव किया गया है।
संगीत दर्शकों को मिट्टी की खुशबू का एहसास कराएगा। - 💔 संवेदना और साहस की कहानी —
यह फिल्म उन संघर्षों को समर्पित है जो लोगों ने हिंसा के बीच जीए —
लेकिन अब वे उस माटी की गंध में शांति तलाश रहे हैं।
🎞️ निर्माता-निर्देशक की सोच
- संपत झा कहते हैं —
“जब धमकियां मिलीं, जब जांच हुई, तब भी हमने शूटिंग नहीं रोकी,
क्योंकि यह हमारी माटी का कर्ज था।” - निर्देशक अविनाश प्रसाद का कहना है —
“जब कैमरा बस्तर की घाटियों की ओर मोड़ा,
तो वहाँ सिर्फ दृश्य नहीं, बल्कि आत्मा तक उतर जाने वाली अनुभूति मिली।”
💫 क्यों देखें यह फिल्म
- यह फिल्म मनोरंजन से आगे बढ़कर भावनाओं, संस्कृति और सच्चाई की गवाही है।
- यह बस्तर की पहचान बदलने का प्रयास है —
जो दुनिया को दिखाएगा कि यहां सिर्फ बारूद नहीं, बल्कि प्रेम, संगीत और जीवन की लय भी है। - 14 नवंबर 2025, जब यह फिल्म सिनेमाघरों में उतरेगी, तो यह सिर्फ “एक फिल्म” नहीं,
बल्कि “बस्तर की आत्मा” की आवाज़ होगी।
