- प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने 31 अक्तूबर / 3 नवम्बर 2025 के आसपास अनिल अंबानी और उनके समूह से जुड़ी संपत्तियों पर कार्रवाई कर कई आदेश जारी किए और कुल मिलाकर लगभग ₹7,500 करोड़ से ज्यादा कीमत की संपत्तियाँ–स्थायी/अस्थायी रूप से—कुर्क की गई हैं। इसमें मुंबई के पाली हिल का आवास और 132-acre Dhirubhai Ambani Knowledge City (DAKC) जैसी बड़ी प्रॉपर्टी भी शामिल बताई जा रही हैं।

- ED का कहना है कि यह कार्रवाई RHFL (Reliance Home Finance Ltd.) और RCFL (Reliance Commercial Finance Ltd.) के माध्यम से जुटाए गए सार्वजनिक धन के कथित दुरुपयोग और उससे जुड़े मनी-लॉन्ड्रिंग संदेहों से जुड़ी जांच का हिस्सा है।
- एजेंसी ने अनिल अंबानी को 14 नवम्बर 2025 को पूछताछ के लिए फिर समन भेजा है — यह उनकी दूसरी बार बुलाने वाली तारीख बताई जा रही है।
2) ED ने क्या किया — “प्रोविज़नल अटैचमेंट” का मतलब
- ED ने PMLA (Prevention of Money-Laundering Act, 2002) की धारा 5(1) के तहत अस्थायी (provisional) अटैचमेंट/कुर्की के आदेश दिए हैं — इसका सीधा मतलब यह है कि जिन संपत्तियों को अटैच किया गया है, उन्हें बिकना/हस्तांतरित करना/शिफ्ट करना अस्थायी रूप से रोका जा सकता है जबकि एजेंसी आगे की कानूनी प्रक्रिया चलाती है।
- कानून के अंतर्गत यह प्रोविजनल अटैचमेंट अधिकतम 180 दिनों तक प्रभावी रहता है; इस दौरान ED को अपने सबूत-सामग्री के साथ ‘Adjudicating Authority’ के समक्ष अटैचमेंट की पुष्टि करानी होती है। अगर Adjudicating Authority पुष्टि कर दे तो अटैचमेंट और बढ़ सकता है/कानूनी प्रक्रिया आगे जा सकती है। (PMLA के नियम और ED की प्रेस-रिलीज़ भी यही क्रम दर्शाते हैं)।
3) आरोप का नाभिक (ED के दावे का सार)
- ED के बयानों और मीडिया रिपोर्टों के अनुसार आरोपों की मुख्य लाइनें ये हैं:
- YES Bank ने 2017–19 के दौरान RHFL/RCFL जैसी संस्थाओं में बड़े निवेश/लोन दिये थे जो बाद में NPA/नॉन-परफॉर्मिंग/investment loss बने;
- ED का शक है कि इन फंड्स को समूह-सम्बद्ध कंपनियों में डायवर्ट किया गया और फिर कुछ रकम/लेन-देनों को मनी-लॉन्ड्रिंग के रूप में पाला-पोसा गया;
- इसलिए RHFL/RCFL से जुड़ी संपत्तियाँ और रिलायंस-सम्बंधित अन्य परिसंपत्तियाँ मामले की जाँच में अटैच/जप्त की गयीं।
4) अनिल अंबानी / ग्रुप का बयान और कारोबारी असर
- रिलायंस ग्रुप (अनिल अंबानी समूह) ने कहा है कि जिन संपत्तियों को अटैच किया गया है उनमें से बहुत-सी संपत्तियाँ रिलायंस कम्युनिकेशंस जैसी कंपनियों की हैं जो पहले से CIRP (corporate insolvency resolution process) में रही-हैं, और इस कार्रवाई से समूह के व्यावसायिक संचालन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा — यानी समूह का दावा है कि बिज़नेस चलने में बाधा नहीं आएगी।
- फिर भी बाजार पर असर पड़ा — संबंधित कंपनियों के शेयर और निवेशक-भाव (sentiment) प्रभावित होते हैं; लंबी कानूनी जंग और जप्त सम्पत्तियों की स्थिति अगर बनी रही तो कर्ज-संबंधी मामलों, पुनर्वित्त/निवेश और परिसंपत्ति-बिक्री योजनाओं पर असर दिख सकता है। (मीडिया-विश्लेषण इसी बात पर जोर देता है।)
5) अब क्या होने की संभावना है — प्रक्रिया के अगले कदम
- ED पूछताछ (14 नवम्बर) — ED अनिल अंबानी से वित्तीय प्रवाह, RHFL/RCFL लेन-देन, और फंड-डायवर्सन के आरोपों पर पूछताछ कर सकती है; उनसे दस्तावेज़, बैंक ट्रांज़ैक्शन, डायरेक्टर्स/एग्जीक्यूटिव से पूछताछ आदि हो सकती है।
- Adjudicating Authority में अटैचमेंट की पुष्टि — ED के पास 180 दिनों का समय है; अगर Adjudicating Authority अटैचमेंट की पुष्टि कर दे तो ऑर्डर लंबा होगा और कानूनी लड़ाई आगे बढ़ेगी। (वकील/कम्पनी पक्ष राज्य करेगा कि अटैचमेंट अवैध/अप्रमाणिक है — ऐसे मामलों में अदालतें और ट्रिब्यूनल सक्रिय होते हैं)।
- कानूनी रास्ते — समूह/अनिल अंबानी पक्ष PMLA के अंदर उपलब्ध उपायों (Adjudicating Authority के निर्णय के खिलाफ अपील) और उच्च न्यायालय/अपीलीय प्रावधानों के जरिये चुनौती दे सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट/हाई-कोर्ट की नीतियाँ और पिछली ज्यूडिशियल-रायें भी मायने रखेंगी।
6) राजनीतिक-व्यावसायिक निहितार्थ (संक्षेप)
- कानूनी-वित्तीय: अगर ED के आरोप पुख्ता साबित हुए और पुष्टि हुई, तो यह कॉर्पोरेट लेन-देन के बड़े पुनरावलोकन और संभवत: अतिरिक्त कॉर्पोरेट-नियामक कार्रवाई का मार्ग खोल सकता है। बैंक/लेन-देन करने वाले संस्थान, क्रेडिट-रिस्टोरेशन प्लान और पुर्नरचना (CIRP)-प्रक्रियाएँ और प्रभावित होंगी
- निवेशक-भाव: ऐसे मामलों से सेक्टर-विशेषकर इनफ्रास्ट्रक्चर/पावर/कम्युनिकेशंस में जोखिम-प्रति-धारणा बढ़ती है, जिससे फंडिंग/कर्ज-उपलब्धता पर दबाव बन सकता है।
- जनसामान्य/राजनीतिक: ऊँचे-प्रोफ़ाइल जांचें अक्सर राजनीतिक तौर-तौर पर भी बहस का विषय बनती हैं; मीडिया कवरेज और राजनीतिक विपक्ष इस पर प्रहार कर सकता है।
7) अगर आप चाहें तो मैं अभी कर दूँगा (तेज़-एक्शन; बिना देर के)
बताइए आप किस तरह की गहराई चाहते हैं — मैं तुरंत कर दूँगा:
- A. संपत्तियों की पूरी सूची (ED ने जिन 40+ प्रॉपर्टीज़ का जिक्र किया है — शहर, किस कंपनी से जुड़ी, अनुमानित वैल्यू)। (सूत्र: ED प्रेस-रिलीज़/Economic Times/Reuters)।
- B. कानूनी रास्तों का कदम-दर-कदम विवरण — PMLA के तहत अटैचमेंट की चुनौती कैसे की जाती है, किस समयसीमा में क्या होता है (आधिकारिक नियम और हाल की सुप्रीम-कोर्ट/हाई-कोर्ट टिप्पणियाँ)।
- C. समाचार-स्रोतों का संकलन (कई लेख/प्रेस-रिलीज़ के लिंक और प्रमुख उद्धरण) — ताकि आप रिपोर्ट-कॉलिंग/रिपोर्ट-राइटिंग के लिए व्यवस्थित स्रोतों से सीधे उद्धरण ले सकें। (मैं Reuters, ET, Business Standard, ED-प्रेस-रिलीज़, ABP/NDTV/IndiaToday आदि से 4–6 मुख्य लिंक दे दूँगा)।
8) निष्कर्ष (संक्षेप में)
- ED की हाल की कार्रवाई बड़े पैमाने पर प्रोविज़नल अटैचमेंट है — यह गंभीर है क्योंकि इससे संपत्तियों पर नियंत्रण जुड़ जाता है और आगे की कानूनी प्रक्रिया तेज़ हो सकती है।
- अनिल अंबानी/ग्रुप ने दावा किया है कि बिज़नेस पर असर नहीं होगा; फिर भी कानूनी जंग, अटैचमेंट और निवेशक-भाव का दबाव अगले कुछ हफ्तों/महीनों में आर्थिक व न्यायिक रूप से महत्वपूर्ण होगा।
