रायपुर, [ताज़ा] — कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हालिया विधानसभा चुनावों और चुनाव प्रणाली में कथित गड़बड़ियों के विषय पर एक बार फिर तेज़ टिप्पणी की। उन्होंने आरोप लगाया कि वोट चोरी के सबूत पहले ही सार्वजनिक किए जा चुके हैं और जिन लोगों/संस्थाओं को शर्मिन्दा होना चाहिए वे नहीं होंगे — “शायद चोरों की यही विशेषता होती है,” उन्होंने कहा।

क्या कहा भूपेश ने ….
- भूपेश ने कहा कि महाराष्ट्र और बिहार की हालिया चुनावी गिनती और परिणामों को देखते हुए भाजपा के ‘स्ट्राइक रेट’ (लड़ा गया बनाम जीता गया) पर सवाल उठते हैं। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के बाद बिहार में भी सहयोगियों के साथ लड कर भाजपा का यह स्ट्राइक रेट असम्भव सा दिखता है और इसे “वोट चोरी” के दावों से जोड़ा जा रहा है।
- बघेल ने दोहराया कि कांग्रेस अध्यक्ष/नेता राहुल गांधी ने चुनावी गड़बड़ियों के “सबूत” जनता के समक्ष रखे हैं और पार्टी इस मामले को उठाती रहेगी।
राजनैतिक पृष्ठभूमि — राहुल गांधी के दावे और उनका असर
गौरतलब है कि यह विवाद राहुल गांधी के अगस्त–नवंबर 2025 के दौरान उठाए गए दावों से जुड़ा हुआ है — जिनमें उन्होंने विभिन्न राज्यों में मतदाता सूची और अन्य चुनावी दस्तावेज़ों में ‘रुचि-दर्शक’ विसंगतियों का हवाला दिया और कहा कि उनके पास ठोस सबूत हैं। यह मुद्दा विपक्ष और सत्ताधारी के बीच तीखी राजनीतिक जंग का केंद्र बना हुआ है। चुनाव आयोग ने विपक्षी आरोपों के सामने औपचारिक रूप से जवाब देने और आवश्यक प्रक्रियाओं का हवाला देते हुए कुछ दावों को खारिज भी किया है।
भाजपा और अन्य का पलटवार — प्रतिक्रिया
भूपेश के आरोपों के बाद जनप्रतिनिधियों और भाजपा से जुड़े वक्ताओं ने पलटवार किया है। कुछ केंद्रीय/राज्य के भाजपा नेताओं ने आरोपों को राजनीतिक रूप से प्रेरित करार दिया और कहा कि चुनाव आयोग और संसदीय प्रक्रियाएँ निष्पक्षता की गारंटी देती हैं। कांग्रेस के इस रुख पर भाजपा के पक्ष में बोलने वालों ने कहा कि आरोपों को औपचारिक रूप में चुनाव आयोग के समक्ष पेश करना चाहिए; वहीं कुछ विश्लेषकों ने चुनावी सर्वप्रवृत्तियों और स्थानीय मसलों को भी मतगणना के नतीजों में महत्वपूर्ण कारण बताया।
चुनाव आयोग (EC) का सन्दर्भ
इस पूरे घटनाक्रम में चुनाव आयोग की भूमिका और उसकी प्रक्रियाएँ बार-बार चर्चा में रहीं। आयोग ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि आरोपों के आगे औपचारिक मान्यताओं और नियमों के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए — उदाहरण के लिए, यदि किसी के पास गम्भीर दावे हैं तो उन्हें शपथ-पत्र/घोषणा के रूप में प्रस्तुत करना होगा ताकि आयोग जांच कर सके। विपक्षी दावों और आयोग की प्रतिक्रियाओं ने बहस को संवैधानिक-प्रक्रियात्मक आयाम दे दिए हैं।
संभावित परिणाम और राजनीति पर असर
- कानूनी/आइनी लड़ाई: अगर कांग्रेस या किसी अन्य पक्ष के पास ठोस, दस्तावेजी साक्ष्य हैं और वे आयोग/न्यायालय में यूनिफ़ॉर्म तौर पर पेश होते हैं तो मामला लंबी कानूनी लड़ाई में जा सकता है।
- जनभावना और मतदाता भरोसा: लगातार चुनावी प्रक्रियाओं पर सवाल उठने से मतदाता का संस्थाओं पर भरोसा प्रभावित हो सकता है — जो चुनावों के प्रति उदासीनता या असंतोष बढ़ा सकता है।
- राजनीतिक विमर्श: यह मुद्दा अगले महीनों में राजनीतिक एजेंडा का हिस्सा बना रहेगा — विशेषकर तब जब अभी-अभी हुए चुनावों के नतीजे और विश्लेषण सार्वजनिक हो रहे हों।
क्या कहा मीडिया/विश्लेषकों ने
मीडिया रिपोर्टों और विश्लेषकों का कहना है कि आरोपों की गंभीरता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता, पर इन्हें साबित करने के लिए नियमित प्रक्रिया (जैसे शपथ-पत्र, कोर्ट में चुनौती, विस्तृत फॉरेंसिक जाँच) आवश्यक है। कई मीडिया पैलेटफ़ॉर्म पर इस बहस ने चुनाव आयोग, ईवीएम/वीवीपैट, और मतदाता सूची प्रक्रियाओं के पारदर्शिता पर विमर्श तेज कर दिया है।
संक्षेप — क्या आगे होगा
- कांग्रेस इस मुद्दे को उठाती रहेगी और दावा कर रही है कि उसके पास पर्याप्त साक्ष्य हैं; भाजपा और चुनाव आयोग ने अभी तक अधिकांश आरोपों को समय-प्रक्रिया के अनुसार चुनौती देने का आग्रह किया है।
- यदि आरोप कानूनी रूप में दायर होते हैं तो मामले की जाँच-प्रक्रिया सार्वजनिक और लंबी हो सकती है; नहीं तो राजनीतिक बहस चुनावी माहौल में जारी रहेगी।
