मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले में महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण आजीविका को मजबूती प्रदान करने की दिशा में ‘बिहान’ योजना प्रभावी ढंग से कारगर सिद्ध हो रही है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गठित स्व-सहायता समूहों की महिलाओं को कृषि, उद्यानिकी, पशुपालन एवं मत्स्य पालन जैसी विभागीय योजनाओं से जोड़ा जा रहा है।

कृषि सखियों के माध्यम से गांव-गांव में किसान पाठशालाएं संचालित की जा रही हैं, जहां ग्रामीण महिलाओं को जैविक खेती की विधियां स्थानीय संसाधनों के माध्यम से सिखाई जा रही हैं। निम्बास्त्र, ब्रह्मास्त्र, अग्निअस्त्र एवं जीवामृत जैसी जैविक दवाओं के निर्माण की जानकारी दी जा रही है, जिससे महिलाएं अब स्वयं ही अपने घरों में जैविक कीटनाशकों का निर्माण कर रही हैं। कीटनाशक दवाओं के दुष्प्रभावों से बचने और खेती की लागत घटाने की दिशा में यह एक सकारात्मक पहल है।
इसके अतिरिक्त बीजोपचार, थरहा निर्माण एवं लाइन विधि से रोपाई जैसे वैज्ञानिक एवं तकनीकी उपायों को भी सरल भाषा में समझाया जा रहा है, जिससे कम लागत में अधिक उत्पादन संभव हो सका है। वर्षा ऋतु को देखते हुए सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु मचान विधि को अपनाया जा रहा है। भरतपुर विकासखंड की स्व-सहायता समूह की महिलाएं स्थानीय संसाधनों से छतनुमा एवं खड़ा मचान तैयार कर रही हैं, जिससे सब्जियों की सुरक्षा, तुड़ाई और छिड़काव की प्रक्रिया सरल हो रही है।
इसी क्रम में पशु सखियों की भी भूमिका अत्यंत सराहनीय रही है। वर्षा ऋतु में पशुओं को विभिन्न रोगों से सुरक्षित रखने हेतु व्यापक टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है। पशु सखी श्रीमती अर्चना सिंह एवं अन्य 6 महिला सखियों द्वारा अब तक 1000 से अधिक बकरों एवं बकरियों का टीकाकरण किया जा चुका है। मुर्गियों के लिए भी आवश्यक औषधियों की आपूर्ति सुनिश्चित की जा रही है।
जिला परियोजना प्रबंधक ने बताया कि महिलाओं से महिलाओं के बीच संवाद सहज होता है। जिले की आजीविका मुख्यतः कृषि आधारित है। ऐसे में महिला सखियों को रिसोर्स पर्सन के रूप में प्रशिक्षित कर विभागीय गतिविधियों से जोड़ना ग्रामीण विकास की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो रहा है। ‘बिहान’ योजना अंतर्गत संचालित यह पहल न केवल ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बना रही है, बल्कि आत्मनिर्भरता और सामुदायिक नेतृत्व की दिशा में भी एक नया आयाम प्रस्तुत कर रही है।